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*5वीं बोर्ड परीक्षा में लापरवाही: परीक्षा केंद्राध्यक्ष अनुपस्थित, शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर उठे सवाल*



*5वीं बोर्ड परीक्षा में लापरवाही: परीक्षा केंद्राध्यक्ष अनुपस्थित, शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर उठे सवाल*


छत्तीसगढ़ परिदर्शन -बलौदाबाजार।

राज्य सरकार द्वारा इस वर्ष 5वीं और 8वीं बोर्ड परीक्षा को गंभीरता से लेते हुए कड़े निर्देश जारी किए गए हैं कि परीक्षा में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इसके बावजूद जिले में पलारी ब्लॉक के ग्राम हरिनभट्टा में परीक्षा को लेकर बड़ी लापरवाही सामने आई है। शासकीय प्राथमिक शाला आदिवासी पारा हरिनभट्टा में आयोजित 5वीं बोर्ड परीक्षा के दौरान परीक्षा में नियुक्ति केंद्राध्यक्ष बंशीदास सोनवानी अपनी ड्यूटी से अनुपस्थित रहे। यह लापरवाही तब उजागर हुई जब स्थानीय अधिकारि ने परीक्षा के दिन 24 मार्च कों परीक्षा केंद्र का निरीक्षण किया और केंद्राध्यक्ष को गायब पाया। आज 27 मार्च कों 5वी बोर्ड की अंतिम परीक्षा के दिन भी केन्द्राध्यक्ष गायब है। 


*बीईओ ने की पुष्टि, फिर भी नहीं हुई कार्यवाही*


इस पूरे मामले को लेकर जब खंड शिक्षा अधिकारी (BEO) नरेश कुमार वर्मा से सवाल किए गए, तो उन्होंने केंद्राध्यक्ष की अनुपस्थिति की पुष्टि कर दी है । इसके बावजूद अब तक शिक्षा विभाग की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। राज्य सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि परीक्षा में किसी भी तरह की लापरवाही पर सख्त कार्रवाई होगी, लेकिन इस मामले में प्रशासन की सुस्ती से शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।


*साजिश के तहत की जा रही लापरवाही?*


सूत्रों के अनुसार, यह केवल एक लापरवाही नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा है। जानकारी मिली है कि केंद्राध्यक्ष खुद निलंबन चाहता है ताकि बाद में मनचाही जगह पोस्टिंग पा सके। इससे पहले भी कई बार ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जहाँ शिक्षक जानबूझकर अपने कर्तव्यों का उल्लंघन करते हैं, निलंबन झेलते हैं और फिर ऊंचे अधिकारियों को कमीशन देकर अपनी पसंदीदा जगह पर ट्रांसफर करा लेते हैं।


*कमीशनखोरी और प्रशासनिक मिलीभगत की बू*


इस पूरे घटनाक्रम में केवल केंद्राध्यक्ष ही नहीं, बल्कि शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध नजर आ रही है। परीक्षा जैसी गंभीर प्रक्रिया में इतनी बड़ी लापरवाही होने के बावजूद किसी भी अधिकारी ने तुरंत कार्रवाई नहीं की। इससे साफ जाहिर होता है कि यह खेल लंबे समय से चल रहा है और इसमें शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारी भी शामिल हो सकते हैं।


*बच्चों के भविष्य से खिलवाड़*


सरकारी स्कूलों में शिक्षा की स्थिति पहले से ही चिंताजनक है। शिक्षकों की कमी, संसाधनों की दिक्कतें और प्रशासनिक लापरवाही से बच्चों की पढ़ाई पहले ही प्रभावित हो रही है। ऐसे में जब शिक्षक खुद ही अपने कर्तव्यों से भागने लगें और शिक्षा विभाग आंख मूंदकर बैठा रहे, तो बच्चों के भविष्य का क्या होगा?

हर साल हजारों बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, जिनका एकमात्र सहारा यही शिक्षा होती है। लेकिन जब शिक्षक और अधिकारी अपनी सुविधाओं के लिए साजिश रचने लगें, तो यह पूरी शिक्षा व्यवस्था पर एक बदनुमा दाग बन जाता है।


 *शिक्षा विभाग में निलंबन फिर मनचाही जगह ट्रांसफर का खेल: बच्चों के भविष्य से खिलवाड़*


शिक्षा का मूल उद्देश्य समाज में ज्ञान का प्रसार करना और बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाना होता है। लेकिन जब शिक्षक और अधिकारी स्वयं अपने स्वार्थों के लिए इस व्यवस्था का दुरुपयोग करने लगें, तो पूरा तंत्र ही भ्रष्टाचार की चपेट में आ जाता है। बलौदाबाजार जिले के शिक्षा विभाग में इस तरह का एक नया "खेल" देखने को मिल रहा है, जिसमें शिक्षक जानबूझकर लापरवाही करते हैं, निलंबन झेलते हैं और फिर ऊँचे अधिकारियों को मोटी रकम देकर अपनी मनचाही जगह पर पोस्टिंग करा लेते हैं। यह खेल न केवल शिक्षा व्यवस्था की जड़ों को खोखला कर रहा है, बल्कि हजारों मासूम बच्चों के भविष्य को भी अंधकार में धकेल रहा है।


*कैसे चलता है यह खेल?*


जानबूझकर लापरवाही करना"


शिक्षक पहले अपने कर्तव्यों में जानबूझकर लापरवाही करते हैं। जैसे – परीक्षा ड्यूटी से गायब रहना, स्कूल में न पढ़ाना, बच्चों की उपस्थिति न बनाना, समय पर स्कूल न जाना, सरकारी आदेशों की अवहेलना करना आदि। इन गतिविधियों से वे शिक्षा विभाग के नियमों का उल्लंघन करते हैं, जिससे उन पर कार्रवाई का खतरा मंडराने लगता है।


निलंबन को हथियार बनाना


इसके बाद जब इन शिक्षकों के खिलाफ शिकायतें होती हैं, तो शिक्षा विभाग उन्हें निलंबित कर देता है। लेकिन यही तो उनकी असली मंशा होती है! निलंबन होने के बाद वे इसे अपने ट्रांसफर की एक सीढ़ी बना लेते हैं।


अधिकारियों को मोटी रकम देकर मनचाही पोस्टिंग पाना


इसके बाद शुरू होता है असली खेल। शिक्षक अपने निलंबन का बहाना बनाकर ऊँचे अधिकारियों से संपर्क साधते हैं और मोटी रिश्वत देकर मनचाही जगह पोस्टिंग की डील पक्की कर लेते हैं। यह खेल इतना संगठित है कि इसमें कई बार बड़े अधिकारी भी शामिल होते हैं, जो पैसे लेकर मनचाही नियुक्ति करवा देते हैं।


*इस खेल के गंभीर परिणाम*


⚫ स्कूलों में शिक्षकों की कमी बढ़ रही है


जब एक शिक्षक जानबूझकर निलंबन की राह चुनता है और फिर अपनी पसंद की जगह चला जाता है, तो उस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का क्या होगा? सरकारी स्कूलों में पहले ही शिक्षकों की भारी कमी है। इस तरह की चालबाजियों से यह समस्या और गंभीर होती जा रही है।


 ⚫ शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है


जब शिक्षकों को यह पता हो कि वे अपने स्वार्थ के लिए नियमों को तोड़ सकते हैं और आसानी से मनचाही जगह पर पोस्टिंग पा सकते हैं, तो उनमें जिम्मेदारी का भाव खत्म हो जाता है। इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर गहरा असर पड़ता है, जिससे सरकारी स्कूलों के बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।


 ⚫ शिक्षा विभाग की साख पर बट्टा


एक विभाग जो बच्चों का भविष्य बनाने के लिए जिम्मेदार है, अगर उसी में भ्रष्टाचार और साजिशें चल रही हों, तो उसकी विश्वसनीयता खत्म हो जाती है। यह खेल पूरे शिक्षा विभाग की छवि को धूमिल कर रहा है।


*समाधान क्या हो?*


🟡निलंबन के बाद ट्रांसफर की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जाए।



🟡निलंबित शिक्षकों को दोबारा उसी जिले या ब्लॉक में पोस्टिंग न दी जाए।



🟡लापरवाही करने वाले शिक्षकों पर कड़ी कार्रवाई की जाए, सिर्फ निलंबन से बात न बने।



🟡शिक्षा विभाग के ट्रांसफर सिस्टम की नियमित निगरानी हो और इसमें भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए सख्त नियम बनाए जाएं।



🟡शिक्षकों की जवाबदेही तय की जाए और जो शिक्षक जानबूझकर लापरवाही करें, उन्हें ब्लैकलिस्ट किया जाए।


*क्या होगी सख्त कार्रवाई या दब जाएगा मामला?*


अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेगा और दोषियों पर कार्रवाई करेगा या फिर यह मामला भी अन्य लापरवाहियों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा? अगर शिक्षा विभाग इस बार भी चुप रहा, तो यह साफ हो जाएगा कि लापरवाह शिक्षकों और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करना सरकार की प्राथमिकता नहीं है

शिक्षा विभाग और प्रशासन को जल्द से जल्द इस मामले की जांच कर दोषी अधिकारियों और शिक्षकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न दोहराई जाएं और बच्चों का भविष्य सुरक्षित रह सके। यदि इस तरह का खेल चलता रहा तों शिक्षा विभाग में हमारे भविष्य यानी बच्चों के साथ एक बहुत बड़ा अन्याय है। जब शिक्षक और अधिकारी स्वयं नियमों को तोड़ने लगें, तो शिक्षा व्यवस्था का गिरना तय है। अगर इस खेल को जल्द ही नहीं रोका गया, तो सरकारी स्कूलों की स्थिति और भी बदतर हो जाएगी। सरकार को इस पर सख्ती से रोक लगानी होगी और दोषियों के खिलाफ ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि शिक्षा का असली उद्देश्य पूरा हो सके और बच्चों को सही मायने में अच्छी शिक्षा मिल सके।

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