*प्रशासनिक लापरवाही से समाधान शिविर पर "ग्रहण" भूख-प्यास से व्याकुल लौटे ग्रामीण, सरकार की किरकिरी*
स्कूल परिसर में आयोजित सुशासन शिविर में अव्यवस्था, स्थल को लेके महिलाओं और वृद्धों को हुई भारी परेशानी*
छत्तीसगढ़ परिदर्शन -बलौदाबाजार।
सुशासन तिहार के अंतर्गत सोमवार को जनपद बलौदाबाजार के ग्राम पंचायत सकरी स्थित डी.ए.वी. स्कूल में आयोजित समाधान शिविर आम जनता के लिए राहत कम, परेशानी ज्यादा लेकर आया। पहली बार जिला मुख्यालय से सटे किसी ग्राम में आयोजित इस शिविर में प्रशासनिक लापरवाही इस कदर हावी रही कि शिविर व्यवस्था पर सवाल खड़े हो गए।भीषण उमस भरी गर्मी में दूर-दराज़ के गांवों से पहुँचे ग्रामीण बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते दिखे। पानी जैसी ज़रूरी व्यवस्था तक सही ढंग से नहीं की गई थी। कार्यक्रम स्थल पर एकमात्र पानी का टैंकर लाया तो गया, परंतु उसे स्कूल के पिछली ओर रख दिए जाने से अधिकांश लोगों को उसकी जानकारी ही नहीं हो पाई। प्यास से व्याकुल लोग पानी के लिए भटकते नजर आए और अंततः निराश होकर शिविर को छोड़ने पर मजबूर हो गए।
स्कूल परिसर में आयोजित सुशासन शिविर में अव्यवस्था, स्थल को लेके महिलाओं और वृद्धों को हुई भारी परेशानी
सुशासन पर्व के अंतर्गत आयोजित विशेष शिविर का आयोजन निर्धारित स्थल एम डी व्ही मैदान के बजाय के स्कूल परिसर के अंदर में किया गया, जिससे स्थान की कमी के कारण शिविर में भारी अव्यवस्था देखने को मिली।स्कूल परिसर में जगह की कमी के चलते शिविर में लगाए गए विभिन्न विभागों के स्टॉल तक आम जनता को पहुंचने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। संकुचित स्थान और भीड़भाड़ के कारण खासकर महिलाओं और वृद्धजनों को काफी परेशानी हुई। कई लोग बिना किसी सेवा का लाभ उठाए ही शिविर स्थल से लौट गए।
सकरी कलस्टर के स्थानीय निवासी ने बताया, “शिविर के लिए अगर पहले से तय बड़े मैदान में आयोजन होता, तो इतनी अव्यवस्था नहीं होती। स्कूल में जगह की भारी कमी थी और न ही कोई समुचित मार्गदर्शन मिल रहा था।”कुछ स्टॉल संचालकों ने भी बताया कि अव्यवस्थित भीड़ और सीमित जगह के कारण उन्हें अपनी सेवाएं देने में कठिनाई हुई।जनता की इस असुविधा को देखते हुए स्थानीय प्रशासन से अपेक्षा की जा रही है कि भविष्य में ऐसे आयोजनों के लिए पर्याप्त स्थान और बेहतर व्यवस्था सुनिश्चित की जाए ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ हर वर्ग तक प्रभावी ढंग से पहुंच सके।
*भोजन व्यवस्था बनी मज़ाक*
शिविर में भोजन की अव्यवस्था भी प्रशासनिक उदासीनता का एक और बड़ा उदाहरण रही। जहाँ अधिकारियों के लिए गरमागरम पूड़ी-सब्जी जो कि मिठाई के पैकेट मे व्यवस्थित ढंग से उपलब्ध कराया गया, वहीं आम नागरिकों को सख्त और ठंडा हो चुका पूड़ी-सब्जी का पैकेट पॉलिथीन में दिया गया। इस भोजन को चबाना बुजुर्गों के लिए तो दूर, बच्चों और युवाओं के लिए भी मुश्किल हो गया। लोगों ने इसे भेदभावपूर्ण और अपमानजनक व्यवहार बताते हुए कड़ी नाराज़गी जाहिर की।
*दाल-चावल की अपेक्षा* *तजुर्बा बन गया सज़ा*
पिछले शिविरों में जहाँ दाल-चावल जैसी गरम और सुपाच्य व्यवस्था थी, वहां की तुलना में सकरी शिविर में मिली व्यवस्था ग्रामीणों के लिए असंतोष का कारण बनी। ग्रामीणों का कहना था कि “दाल-चावल की व्यवस्था होती तो कम से कम पेट भर जाता, न की इस तरह अपमानित होकर लौटना पड़ता।”
*बिजली, पार्किंग और छांव*—*तीनों नदारद*
कार्यक्रम के बीच बिजली गुल हो जाने से भी लोग परेशान हुए। स्टैंड की कोई समुचित व्यवस्था न होने के कारण गाड़ियों को खुले में तेज धूप में खड़ा करना पड़ा। छांव की भी व्यवस्था न होने से महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
*शिविर में आए ग्रामों की हालत बेहाल*
शिविर में सकरी, भरसेला नया, दशरमा, कंजी यदु, खम्हरिया, पूरेना, खपरी, रिसदा, ठेलकी, चांपा और परसाभदेड़ जैसे ग्रामों से बड़ी संख्या में ग्रामीण पहुँचे थे, लेकिन अव्यवस्था और प्रशासनिक लापरवाही के चलते वे अपनी समस्याएँ बताए बिना ही निराश होकर लौट गए।
*सरकार की मंशा पर उठा सवाल*
जहां एक ओर प्रदेश सरकार सुशासन तिहार के माध्यम से आम जन की समस्याओं का मौके पर समाधान करने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर शिविरों में हो रही लापरवाही और अव्यवस्था से लोगों के बीच सरकार की छवि धूमिल होती नजर आ रही है। लोगों में इस बात की चर्चा आम रही कि जब "समाधान शिविर" ही समस्या बन जाए, तो फिर आम जनता कहां जाए?
प्रशासन को चाहिए कि ऐसी घटनाओं से सबक लेते हुए भविष्य में आयोजित होने वाले शिविरों की व्यवस्थाओं का पूर्व निरीक्षण करें ताकि जनता की सेवा वास्तव में "सुशासन" का अनुभव करवा सके, न कि उसे निराश और उपेक्षित महसूस कराए।

