*उजागर हुई सच्चाई: सचिव नहीं, सरपंच निकलीं गैरजिम्मेदार*
छत्तीसगढ़ परिदर्शन -पलारी।
ग्राम पंचायत नवागांव में सरपंच और सचिव के बीच चल रही तनातनी अब उजागर हो चुकी है। सरपंच अंजू कोशले द्वारा पंचायत सचिव पर लगाए गए आरोपों की जब जमीनी स्तर पर पड़ताल की गई, तो सभी आरोप पूरी तरह से झूठे, मनगढ़ंत और दुर्भावनापूर्ण पाए गए। सरपंच द्वारा सचिव पर प्रभार न देने, दस्तावेज़ न सौंपने और चार माह तक पंचायत कार्य से गायब रहने जैसे जो गंभीर आरोप लगाए गए थे, उनकी सच्चाई जमीन पर कहीं नजर नहीं आई। उल्टे तथ्यों ने यह साबित कर दिया कि यह सब एक सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा है जिसका उद्देश्य सचिव को पद से हटवाकर व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध करना है।
*सचिव को बदनाम करने का प्रायोजित प्रयास, आरोपों में कोई सच्चाई नहीं*
पंचायत स्तर पर जब इन आरोपों की वस्तुस्थिति जानी गई, तो सामने आया कि सरपंच अंजू कोशले द्वारा पंचायत सचिव के विरुद्ध जो आरोप लगाए गए, वे निराधार ही नहीं बल्कि दुर्भावनापूर्ण भी हैं। वस्तुस्थिति यह है कि स्वयं सरपंच ही प्रभार लेने से बच रही हैं। पंचायत की गतिविधियों में भागीदारी से वे जानबूझकर दूरी बनाए हुए हैं। इसके विपरीत, सचिव नियमित रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए पंचायत के सभी आवश्यक कार्यों का कुशलता से निर्वहन कर रही हैं। ग्रामवासियों के अनुसार, यह स्पष्ट दिखता है कि सरपंच सचिव को फँसाकर नवागांव पंचायत से हटवाने की मंशा रखती हैं। यही कारण है कि वे निरंतर मीडिया एवं उच्च अधिकारियों के समक्ष झूठे आरोप प्रस्तुत कर रही हैं।
*सचिव की निष्ठा और निरंतरता बनी पंचायत की पहचान*
सचिव सरिता पैकरा सचिवसंघ की हड़ताल समाप्त होने के बाद लगातार नवागांव पंचायत में कार्यरत रही हैं। उनके कार्यों की एक लंबी सूची है, जिनमें शामिल हैं- प्रथम सम्मलेन में नवनिर्वाचित पंच-सरपंच को शपथ दिलाना। भूतपूर्व सरपंच से वर्तमान सरपंच को प्रभार दिलवाना। पंचायत संबंधित दस्तावेजों और सामग्री को सूचीबद्ध कर सौंपना। ‘सुशासन तिहार’, ‘संध्या चौपाल’, ‘चावल उत्सव’ आदि सरकारी कार्यक्रमों में नियमित सहभागिता। 215 पात्र हितग्राहियों का ‘आवास प्लस 2.0’ अंतर्गत सर्वे कार्य। जनम-मृत्यु प्रमाण पत्र निर्गमन की नियमित प्रक्रिया।
इन तमाम कार्यों की पुष्टि ग्राम के उपसरपंच, पंचगण और ग्रामवासी स्वयं कर रहे हैं। सचिव की कार्यशैली पारदर्शिता और जवाबदेही की मिसाल बन चुकी है। ऐसे में उनके खिलाफ लगाए गए आरोप न केवल प्रशासनिक प्रक्रिया का अपमान हैं, बल्कि नारी सशक्तिकरण और पंचायत व्यवस्था को कमजोर करने की साजिश भी प्रतीत होते हैं।
*सरपंच स्वयं रही अनुपस्थित, कार्यक्रमों से बनाई दूरी*
ग्राम स्तर पर आयोजित किए गए कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों — जैसे समाधान शिविर, संध्या चौपाल, चावल उत्सव आदि — से सरपंच अंजू कोशले पूर्णतः अनुपस्थित रहीं। न तो उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन किया और न ही पंचायत विकास से जुड़ी किसी गतिविधि में भाग लिया। इसके बावजूद मीडिया और प्रशासन के समक्ष सचिव के विरुद्ध लगातार झूठे बयान दिए गए। गांव के कई लोगों का यह भी कहना है कि पंचायत सचिव ही एकमात्र ऐसा प्रशासनिक पदाधिकारी है जो निरंतर रूप से कार्य कर रही हैं, जबकि सरपंच केवल बयानबाज़ी में व्यस्त हैं।
*'लेटरपैड’ में भी झलकी दुर्भावना*
सचिव के प्रति सरपंच की दुर्भावना का प्रमाण उस लेटरपैड में साफ नजर आता है, जिसमें सचिव के विरुद्ध शिकायत की गई। सामान्यतः पंचायत के लेटरपैड में सरपंच और सचिव दोनों के पदनाम प्रिंटेड रहते हैं, लेकिन इस लेटरपैड में सचिव का नाम लिखा ही नहीं गया है । इससे यह स्पष्ट होता है कि सरपंच की मंशा सचिव को पहले से ही हटवाने की थी और उसी मंशा के तहत सचिव को बदनाम करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से झूठे आरोप लगाए जा रहे है। सरपंच सचिव के संयुक्त दायित्व से ग्राम पंचायत में कोई वित्तीय गतिविधियों हुई रहती और यदि उसमें सचिव द्वारा मनमानी और नियमविरुद्ध कार्य किया गया रहता तब कि स्थिति में सरपंच द्वारा सचिव पर आरोप लगाना जायज कहलाता। लेकिन यहाँ तो सरपंच ग्राम विकास की कार्य को छोड़कर सीधा सचिव को हटाने की टारगेट पर काम करती नजर आ रही है। जों पूरी तरह सुनियोजित है और उसमें राजनीतीक षड़यंत्र की बू आ रही है
*उपसरपंच चुनाव की हार बनी मनमुटाव की जड़*
सूत्रों की मानें तो सरपंच की ओर से सचिव के खिलाफ चल रहे अभियान के पीछे पंचायत के उपसरपंच चुनाव में एक पंच की हार मुख्य कारण है। चुनाव में हारने वाले इस पंच ने, बदले की भावना से, सरपंच को अपने पक्ष में करके सचिव को हटाने का प्रयास शुरू किया है। उनके ही इशारे पर यह कि सचिव को कुछ महीने ऐसे ही परेशान करो ताकि वह स्वयं पंचायत छोड़कर चली जाएगी। इसी वजह से सचिव द्वारा पंचायत गतिविधियों में लिए जा रहे निर्णयों में अवरोध उत्पन्न किया जा रहा है और उन्हें लेकर बेबुनियाद आरोप गढ़े जा रहे हैं।
*पंचायती व्यवस्था में पुरुषसत्तात्मक सोच का वर्चस्व*
कुछ ग्रामवासी भी सचिव के विरोध में बयानबाजी कर रहे है वें कोई और नहीं कुछ पंचपति है। ज्ञात हो कि ग्राम पंचायत नवागांव में कई महिला पंच निर्वाचित होकर आई हैं, लेकिन ग्रामवासियों का कहना है कि वास्तविक रूप से निर्णय उनके पति (पंचपति) लेने की कोशिश कर रहे हैं। पंचायत सचिव ने पंचायती राज अधिनियम का पालन करते हुए ‘पंचपतियों’ की अनधिकृत उपस्थिति का विरोध किया है ताकि महिला जनप्रतिनिधि स्वयं आगे आएं और पंचायत निर्णयों में भाग लें। लेकिन यही बात पुरुषप्रधान सोच को रास नहीं आ रही और सचिव को टारगेट किया जा रहा है।
*राजनीति की भेंट चढ़ रहा ग्राम विकास, जनता परेशान*
ग्रामवासी बताते हैं कि उन्होंने विकास की उम्मीदों से अंजू कोशले को सरपंच चुना था, लेकिन अब उन्हें पछतावा हो रहा है। पंचायत में चल रहे अंतर्कलह और झूठे आरोपों की राजनीति के कारण गांव के लोग मूलभूत सुविधाओं — जैसे पेंशन, आवास, राशन कार्ड, जनकल्याण योजनाएं — से वंचित होते जा रहे हैं।
स्थिति यह है कि ग्राम के जनप्रतिनिधि एवं आम जनता अब सरपंच के खिलाफ कार्रवाई की मांग लेकर जिला पंचायत और कलेक्टर कार्यालय तक आवेदन दे चुके हैं।
*जवाबदेही और पारदर्शिता बनाम राजनीति और द्वेष*
यह विवाद पंचायत व्यवस्था में ईमानदार कार्य करने वालों पर किस तरह से द्वेषभाव से प्रहार किया जाता है, उसका उदाहरण बन चुका है। सचिव पैकरा की निरंतर उपस्थिति, जवाबदेही, और सेवा भावना के सामने सरपंच अंजू कोशले की निष्क्रियता, दुर्भावना और षड्यंत्रकारिता साफ-साफ झलकती है। यदि इस पर शीघ्र प्रशासनिक रूप से सकारात्मक पहल नहीं हुई तो नवागांव में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इस मामले पर निष्पक्ष जाँच कर ऐसी स्थिति उत्पन्न करने वाले सभी दोषियों के खिलाफ दण्डात्मक कार्यवाई किया जावे ताकि भविष्य में कोई भी जनप्रतिनिधि अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु ईमानदार कर्मचारी पर बेबुनियाद आरोप लगाकर उन्हें बदनाम करने की हिम्मत न कर सके।





