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*गुरु धाम कैलाशगढ़ में गुरु बालकदास जयंती एवं विचार संगोष्ठी का हुआ आयोजन*

 

*गुरु धाम कैलाशगढ़ में गुरु बालकदास जयंती एवं विचार संगोष्ठी का हुआ आयोजन*

बलौदाबाजार। छत्तीसगढ़ परिदर्शन

मानवता सतनाम सेवा समिति कैलाशगढ़ में सतनामी समाज के द्वितीय सर्वोच्च गुरु, महान प्रतापी शूरवीर और बलिदानी राजा गुरु बालकदास जी की 220वीं जयंती गरिमामय वातावरण में धूमधाम से मनाई गई। गुरु घासीदास जी और माता सफूरा के द्वितीय पुत्र गुरु बालकदास जी का अवतरण भाद्रपद कृष्ण अष्टमी सन् 1805 को हुआ था। परंपरा अनुसार उनकी जयंती के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष सप्तमी, अष्टमी और नवमी को गिरौदपुरी धाम में अर्धवार्षिक मेला आयोजित होता है। इस वर्ष यह आयोजन 15, 16 एवं 17 अगस्त तक चल रहा है। इसी कड़ी में कैलाशगढ़ गुरुधाम में भी समिति द्वारा विशेष आयोजन किया गया।

*सामाजिक सुधार और आंदोलन पर चर्चा*

कार्यक्रम के दौरान उपस्थित संत जनों और समाज प्रतिनिधियों ने गुरु बालकदास जी के जीवन दर्शन, उनके संघर्ष और समाज के उत्थान हेतु किए गए योगदानों पर विस्तृत चर्चा की।

मुख्य अतिथि प्रदेशाध्यक्ष विक्रम राय ने कहा कि गुरु बालकदास जी को अपने पिता गुरु घासीदास जी के विचारों और कार्यों का गहरा प्रभाव प्राप्त हुआ। सन् 1820 में जब उन्हें सतनाम आंदोलन का प्रमुख बनाया गया, तब से उन्होंने आजीवन शोषित-पीड़ित मानवता की रक्षा और सतनाम आंदोलन को गति देने का काम किया। अंग्रेजों द्वारा बनाए गए "मालिक मकबुजा कानून" से भी सतनामी समाज को भूमि पर मालिकाना हक मिला, जिसका श्रेय सतनाम आंदोलन की ताकत और गुरु बालकदास जी के नेतृत्व को जाता है।

*कुप्रथाओं और शोषण के विरुद्ध संघर्ष*

समिति अध्यक्ष रूपेंद्र खुटे ने अपने उद्बोधन में कहा कि गुरु बालकदास जी ने अपने पिता की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाया और सतनाम मार्ग को आंदोलन का रूप दिया। उन्होंने समाज में शिक्षा के प्रसार, बलि प्रथा और सती प्रथा पर रोक लगाने, विधवा विवाह को बढ़ावा देने और छत्तीसगढ़ में होने वाले धार्मिक शोषणों के खिलाफ आवाज बुलंद की। इतना ही नहीं, उन्होंने गैरबराबरी और भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष किया तथा छत्तीसगढ़ में पिंडारियों द्वारा किए जाने वाले अत्याचार, लूट, हत्या और डकैती को समाप्त करने में अपने शस्त्र अखाड़ा योद्धाओं के साथ निर्णायक भूमिका निभाई। कार्यक्रम में वक्ताओं ने यह भी बताया कि गुरु बालकदास जी की जयंती केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश, दिल्ली, असम, ओडिशा और महाराष्ट्र सहित उन सभी प्रदेशों में मनाई जाती है, जहां-जहां सतनामी समाज के लोग रहते हैं। इस आयोजन से समाज में एकता, भाईचारा और सामाजिक चेतना का संचार होता है।

*बड़ी संख्या में समाजिक लोगों की गरिमामय उपस्थिति रही*

इस अवसर पर मुख्य अतिथि विक्रम राय, समिति अध्यक्ष रूपेंद्र खुटे, सरपंच डॉ. बंशी बंजारे, सरपंच ईश्वर महिलांग, मुंगेलाल मारकंडे, कलश महिलांग, रामनारायण भारद्वाज, विशेष आमंत्रित अथिति मनमोहन कुर्रे उपाध्यक्ष खोरपा परिक्षेत्र भुनेश्वर ओगरे, धम्मन कुर्रे, युगल कोसले, शेखर कुर्रे, देवादास मिरी समिति सदस्य गणेश महिलांग विनोद चेलक, चंदूलाल घृतलहरे, शैल भारद्वाज, पुष्पकांत मेजर, लेखराम गनहरे, लकेश कुमार,आत्माराम बांधे, पूरन पंकज, जनक राम बंजारे, काशी टंडन, गुहत राम बंजारे, भूपत टंडन, भूपेंद्र बांधे सहित बड़ी संख्या में समाजजन, संत और क्षेत्रवासी उपस्थित रहे। गुरु बालकदास जी की जयंती केवल एक पर्व नहीं बल्कि समानता, न्याय, शिक्षा और मानवाधिकारों के लिए संघर्ष का प्रतीक है। उनकी शिक्षाएँ आज भी समाज को दिशा देने का कार्य कर रही हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।

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