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*अंबिकापुर में बसपा द्वारा आदिवासी मेला आयोजित*

 


*अंबिकापुर में बसपा द्वारा आदिवासी मेला आयोजित*

*आदिवासी अधिकारों और शोषण के मुद्दों पर गरजे वक्ता*

अंबिकापुर।छत्तीसगढ़ परिदर्शन

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सरगुजा जोन द्वारा आयोजित एक दिवसीय विशाल आदिवासी मेला अंबिकापुर स्थित राजीव गांधी शासकीय महाविद्यालय ऑडिटोरियम में पूरे जोश और उत्साह के साथ संपन्न हुआ। इस आयोजन में न केवल आदिवासी संस्कृति का भव्य प्रदर्शन हुआ, बल्कि आदिवासी समाज के अधिकारों, जल-जंगल-जमीन की रक्षा और राजनीतिक शोषण के विरुद्ध जोरदार आवाज भी उठाई गई।

*भाजपा पर आदिवासी शोषण के गंभीर आरोप*

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मनीष आनंद (प्रभारी, छत्तीसगढ़ प्रदेश) ने अपने संबोधन में छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज के शोषण को लेकर तीखे तेवर दिखाए। उन्होंने कहा,

 “छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के नाम पर आदिवासियों को गाजर-मूली की तरह काटा जा रहा है। यह सुनियोजित शोषण है, जिसे सत्ता संरक्षण प्राप्त है।”

विशिष्ट अतिथि दाऊराम रत्नाकर (पूर्व विधायक, पामगढ़) ने भी अपने भाषण में राज्य की खनिज संपदाओं और वन क्षेत्रों पर पूंजीपतियों के कब्जे का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा,

 “छत्तीसगढ़ में आदिवासी अब अपने ही जंगल, जमीन और जल से बेदखल हो रहे हैं। कुछ चंद सेठ-साहूकार पूरे प्रदेश की संपदा को लूट रहे हैं, और सरकार मौन है।”

‘पेड़ मां’ और वन कटाई पर दोहरा मापदंड: श्याम टंडन

प्रदेश अध्यक्ष श्याम टंडन ने सरकार की दोहरी नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा,“भाजपा एक तरफ ‘पेड़ मां’ का नाम लेकर भावनात्मक अपील करती है, दूसरी तरफ वन क्षेत्र की अंधाधुंध कटाई करवा रही है।”

*सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने बटोरी वाहवाही*

मेले में आदिवासी नृत्य और बहुजन जागृति जत्था की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। परंपरागत वेशभूषा और संगीत के साथ कलाकारों ने आदिवासी जीवनशैली और संघर्षों को जीवंत किया।

प्रमुख उपस्थिति

इस अवसर पर कई प्रमुख नेता और कार्यकर्ता उपस्थित रहे, जिनमें प्रमुख हैं हेमंत पोयाम (पूर्व अध्यक्ष, बसपा छग)धन सिंह धुर्वे, इनोसेंट कुजुर, बृजमोहन सिंह गौड़, आनंद तिग्गा,इंदू बंजारे, दूजराम बौद्ध, रामेश्वर खरे (सभी पूर्व विधायक),आशीष रात्रे (जिला प्रभारी, धमतरी), एड. संतोष मारकंडेय (जिला अध्यक्ष),विमला आगरे, संजय गजभिए, हेमंत मिरी, प्रहलाद साहू, एड. दूजलाल बंजारे आदि।

इस मेले ने केवल एक सांस्कृतिक आयोजन तक सीमित न रहकर राजनीतिक चेतना, सामाजिक अधिकारों और आदिवासी समुदाय की समस्याओं को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया। बसपा ने स्पष्ट कर दिया कि वह आने वाले समय में आदिवासी हितों के लिए और अधिक मजबूती से संघर्ष करेगी।


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