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*मनखे-मनखे एक समान'' के संदेश को समर्पित नया नाम – गुरु घासीदास धाम" से बलौदाबाजार का बढेगा गौरव*

 


*मनखे-मनखे एक समान'' के संदेश को समर्पित नया नाम – गुरु घासीदास धाम" से बलौदाबाजार का बढेगा गौरव*


बलौदाबाजार: छत्तीसगढ़ परिदर्शन।

छत्तीसगढ़ की पुण्य भूमि जिला बलौदाबाजार, जो सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक चेतना की मिसाल रही है, अब एक ऐतिहासिक पहल की ओर अग्रसर है। जिले का नाम बदलकर “गुरु घासीदास धाम” किए जाने की मांग पिछले कई वर्षों से सतनामी समाज द्वारा उठाई गयी है, जिसे जिले के सभी वर्गों, समुदायों और सर्व समाज से भरपूर समर्थन प्राप्त हो रहा है। विष्णुदेव की सुशासन की सरकार में यह मांग पूर्ण होने की सम्भावना जतायी जा रही है। बताते चले कि पिछले वर्षों में छत्तीसगढ़ सतनामी समाज गिरौदपूरी धाम संगठन ने राज्य सरकार को जिले का नाम बदलने की मांग करते हुए आवेदन प्रस्तुत किया था, जिसकी प्रति वर्तमान में मुख्यमंत्री निवास कार्यालय से सचिव (भारसाधक) छत्तीसगढ़ शासन तथा संबंधित कलेक्टर कार्यालय को भेजी गई है। इस कार्यवाही के तहत सभी एसडीएम को अभिमत हेतु आवेदन अग्रेषित किया गया है, जो वर्तमान में सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। इस मुद्दे पर जिले के अधिकांश नागरिक नाम परिवर्तन के पक्ष में सहमति जता रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि समाज में इस मांग को लेकर व्यापक समर्थन है। यह पहल सांस्कृतिक पहचान और ऐतिहासिक मान्यताओं को मान्यता दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखी जा रही है। यदि ऐसा होता है तो निश्चित रूप से यह प्रस्ताव ना केवल क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को सशक्त करेगा, बल्कि संत परंपरा के गौरव को भी एक नई ऊँचाई देगा।


*गुरु घासीदास: समानता, सत्य और मानवीय मूल्यों के प्रतीक*


बाबा गुरु घासीदास जी, सतनाम पंथ के संस्थापक और छत्तीसगढ़ की संत परंपरा के सर्वोपरि प्रतीक, का अवतरण 18 दिसम्बर 1756 को बलौदाबाजार जिले के पवित्र गिरौदपूरी धाम में हुआ था। उन्होंने “मनखे-मनखे एक समान” का प्रेरणादायक संदेश देकर जातिवाद, ऊँच-नीच, छुआछूत, अंधविश्वास और समाज में फैली तमाम कुरीतियों के विरुद्ध एक अद्वितीय आंदोलन की शुरुआत की। उनका जीवनदर्शन आज भी सामाजिक न्याय, मानवीय गरिमा और नैतिक मूल्यों की स्थापना में प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।


गुरु घासीदास जी ने न केवल मानवाधिकारों की रक्षा की, बल्कि उन्होंने पीड़ित और शोषित वर्गों को आत्म-सम्मान और आत्मबल का रास्ता दिखाया। जातीय भेदभाव, सतीप्रथा, नरबलि-पशुबलि, देवदासी प्रथा, स्त्री-पुरुष असमानता जैसे तमाम सामाजिक बुराइयों के खिलाफ उन्होंने अलख जगाई और समाज को समानता, भाईचारा और नैतिक आचरण का मार्ग दिखाया।



*जिले का नाम परिवर्तन: सामाजिक सौहार्द का प्रतीक*


बलौदाबाजार जिले की पहचान न केवल प्रशासनिक रूप से, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी बाबा गुरु घासीदास जी के नाम से जुड़ी हुई है। गिरौदपुरी धाम आज भी लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है, जहां देशभर से लोग विश्व की सबसे ऊंचा जैतखाम के दर्शन और बाबा गुरु घासीदास जी के आशीर्वाद पाने उपदेशों का अनुसरण करने आते हैं। ऐसे में जिले का नाम बदलकर *“गुरु घासीदास धाम”* रखा जाना ना केवल एक औपचारिकता होगी, बल्कि यह पूरे समाज के लिए गर्व और सम्मान की बात होगी।

सतनामी समाज की इस मांग को अब सर्व समाज का भी व्यापक समर्थन मिल रहा है। हर वर्ग के लोग – चाहे वे किसी भी जाति, धर्म या पंथ से हों – इस पहल को समाज के एकता और गौरव के प्रतीक के रूप में देख रहे हैं। नाम परिवर्तन से जिले की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पहचान को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान मिलेगी।



*जिलेवासियों की भावना: सौभाग्य है कि हम बाबा जी के जन्मस्थल से हैं*


बलौदाबाजार जिले के निवासी स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं कि वे उस भूमि पर रहते हैं जहां संत शिरोमणि बाबा गुरु घासीदास जी ने जन्म लिया। उनके विचार आज भी लोगों के जीवन को दिशा दे रहे हैं। “मनखे-मनखे एक समान” केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक जीवंत विचारधारा है, जो समाज के हर वर्ग को जोड़ने का कार्य कर रही है।

जिले का नाम “गुरु घासीदास धाम” रखे जाने से न केवल इतिहास और परंपरा को सम्मान मिलेगा, बल्कि भावी पीढ़ियों को भी अपने महान संत के आदर्शों से जुड़ने का अवसर मिलेगा।


*सामाजिक चेतना और सम्मान की दिशा में ऐतिहासिक कदम*


जिले का नाम बदलना कोई सामान्य बदलाव नहीं है, यह एक ऐतिहासिक निर्णय होगा जो एक महान संत की विरासत को सम्मान देने का माध्यम बनेगा। बलौदाबाजार को *“गुरु घासीदास धाम”* के रूप में स्थापित करना, न केवल सतनामी समाज की भावनाओं का सम्मान है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ और भारत की सांस्कृतिक धरोहर को भी वैश्विक पहचान देने की दिशा में एक सशक्त कदम होगा।

समाज की यह एकता, श्रद्धा और जागरूकता ही दर्शाती है कि संत परंपरा की यह भूमि अब अपने असली नाम से पहचानी जानी चाहिए – *“गुरु घासीदास धाम”*।


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