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नशे के सौदागरों का हमदर्द बना आबकारी विभाग

 

नशे के सौदागरों का हमदर्द बना आबकारी विभाग!*

 


*नशे के सौदागरों का हमदर्द बना आबकारी विभाग!*

*महिलाएं और सरपंच नशा मुक्ति के संघर्ष में अकेले, जिम्मेदार विभाग पर भारी आरोप*

छत्तीसगढ़ परिदर्शन- पलारी।

सलोनी गांव में खुली शराब बिक्री से बिगड़ता सामाजिक ताना-बाना, नशे में गिरफ्त होते युवा, गांव में फैली अशांति से परेशान होकर गांव के उज्ज्वल भविष्य की आशा संजोए महिलाएं और स्थानीय सरपंच बंशी बंजारे जब गांव को नशा मुक्त बनाने की मुहिम में दिन-रात जुटे हों, तब उसी गांव में कानून के रक्षक ही यदि अपराधियों के हमदर्द बन जाएं, तो इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है?

*कमाई के चक्कर में कानून को भूला आबकारी विभाग!*

शुक्रवार, 2 मई को आबकारी विभाग की “छत्तीसगढ़ शासन” लिखित सरकारी गाड़ी से अधिकारी सलोनी गांव पहुंचे। एक घर में छापा मारकर बड़ी मात्रा में अंग्रेजी शराब जब्त की गई और एक व्यक्ति को हिरासत में भी लिया गया। परंतु जैसे ही अधिकारी गांव से बाहर रोहासी पहुंचे, आरोपी को चुपचाप छोड़ दिया गया।

*गांववाले बोले — 'कुख्यात शराब तस्कर हर बार पैसे देकर बच निकलता है'*

ग्रामीणों का दावा है कि जिसे पकड़ा गया, वह वर्षों से गांव में अवैध शराब का व्यापार कर रहा है और हर बार मोटी रकम देकर छूट जाता है। यही नहीं, उसके संरक्षण में कई अन्य लोग भी शराब का धंधा कर रहे हैं। जब भी कार्यवाही होती है, वही नाम सामने आता है और वही फिर छूटकर पहले से अधिक तेज़ी से शराब बेचने लगता है।

*नशा मुक्त गांव की राह में सबसे बड़ा रोड़ा: आबकारी विभाग!*

महिलाओं और सरपंच की कोशिशों के बावजूद, आबकारी विभाग की कथित मिलीभगत के चलते गांव में नशा मुक्त अभियान पलीता बनता जा रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि विभाग का मुख्य उद्देश्य सिर्फ कमीशन वसूली रह गया है, न कि अवैध शराब पर नियंत्रण।

*कमीशनखोरी में डूबा विभाग, गांव की बर्बादी का जिम्मेदार कौन?*

ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने कई बार अधिकारियों को आवेदन सौंपे, सबूत दिए और मुलाकातें कीं, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिला। जब विभाग के जिम्मेदार अधिकारी ही भ्रष्टाचार में लिप्त हों, तो न्याय की उम्मीद करना ही व्यर्थ लगने लगा है।

*जब जिम्मेदार ही बन जाएं माफिया के भागीदार!*

यह बात अब किसी से छिपी नहीं कि जिन पर रोकथाम की जिम्मेदारी है, वही शराब माफिया के सरंक्षक बन चुके हैं। विभाग की कार्यप्रणाली न केवल चिंताजनक है, बल्कि लोकतंत्र और प्रशासनिक पारदर्शिता पर भी बड़ा सवाल खड़ा करती है।

*'पहले मुख्य माफिया पर हो कार्रवाई, तभी बाकी रुकेंगे' — ग्रामीणों की मांग*

महिलाओं का कहना है कि जब तक गांव के मुख्य शराब माफिया पर कठोर कार्रवाई नहीं होती, तब तक बाकी अवैध धंधेबाज भी सक्रिय रहेंगे। कुछ अवैध विक्रेता खुलेआम कह रहे हैं — "पहले उसे बंद कराओ, फिर हम भी रुक जाएंगे।"

*जनता पूछ रही है — 'अब न्याय के लिए कहां जाएं?'*

जब कानून लागू करने वाली संस्था ही अपराधियों की साझेदार बन जाए, तो आम जनता न्याय की गुहार लेकर किसके पास जाए? सलोनी गांव के निवासियों में गहरा रोष और निराशा है।

*प्रशासन से सीधी मांग: सख्त कार्रवाई हो!*

ग्रामीणों की एक ही मांग है — शासन तत्काल संज्ञान ले, दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हो और गांव को नशे के दंश से बचाया जाए। तभी प्रशासन पर जनता का भरोसा फिर से बहाल हो सकेगा।

*वसूली में व्यस्त आबकारी विभाग, कार्रवाई का भार अब उड़नदस्ता और पुलिस पर*

जिले में आबकारी विभाग की निष्क्रियता और कमीशनखोरी अब किसी से छुपी नहीं है। अवैध शराब कारोबारियों से मिलीभगत के चलते विभाग ने अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया है। नतीजा यह है कि अब या तो रायपुर की उड़नदस्ता टीम को विशेष कार्रवाई के लिए भेजा जा रहा है या फिर पुलिस विभाग को अपने महत्वपूर्ण कार्यों को छोड़कर कोचियों को पकड़ने में जुटना पड़ रहा है। हाल ही में उड़नदस्ता और पुलिस ने अलग-अलग जगहों पर अवैध कच्ची शराब पर बड़ी कार्रवाई की है, जो आबकारी विभाग की लापरवाही का खुला प्रमाण है।

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