*ग्राम पंचायत कौड़िया के उपसरपंच विष्णु साहू ने प्रदेशवासियों को दी हरेली तिहार की शुभकामनाएं — बताया “हरेली है नवयुग के लिए पुरातन का संदेश”*
पलारी।छत्तीसगढ़ परिदर्शन
छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोकसंस्कृति का प्रतीक हरेली तिहार ग्राम पंचायत कौड़िया में पारंपरिक हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर ग्राम पंचायत के उपसरपंच विष्णु साहू ने ग्रामवासियों और समस्त प्रदेशवासियों को हरेली पर्व की गाढ़ी बधाई और शुभकामनाएं दीं।
विष्णु साहू ने कहा कि —
> “आज जब आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं, ऐसे समय में हरेली तिहार हमें फिर से हमारी मिट्टी, पूर्वजों और परंपराओं की ओर लौटने का निमंत्रण देता है। यह त्योहार आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाता है कि प्रकृति, परिश्रम और परंपरा ही विकास की असली नींव हैं।”
🌾 हरेली तिहार के माध्यम से सांस्कृतिक जागरूकता
उन्होंने बताया कि हरेली पर्व खेती-किसानी के नए मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन किसान अपने औजारों – हल, गैंती, फावड़ा, नांगर, कोपर, दतारी, टंगिया, गैती आदि – की विधिवत पूजा करते हैं। इससे यह मान्यता जुड़ी है कि उपकरणों की पूजा से अच्छी फसल और समृद्धि प्राप्त होती है।
🌿 प्रकृति और हरियाली का उत्सव
“हरेली” शब्द स्वयं हरियाली का प्रतीक है। यह त्योहार बरसात और नई हरियाली के स्वागत का पर्व है। इस दिन लोग अपने गाय-बैलों को स्नान कराकर, सजाकर पूजा करते हैं — ताकि कृषि कार्य में सहयोग देने वाले इन पशुओं के प्रति आभार और श्रद्धा प्रकट किया जा सके।
👦 परंपरागत खेल और गेंड़ी का रोमांच
गांवों में बच्चे और युवा गेंड़ी चढ़ने, भौंरा चलाने, रस्साकशी और लोकनृत्य-गीत जैसी पारंपरिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। गेंड़ी की पूजा की भी परंपरा रही है, जो पहले के समय कीचड़ भरे रास्तों में चलने का महत्वपूर्ण साधन था।
🏡 गृहणियों का योगदान और पकवानों की खुशबू
इस दिन गृहणियाँ चूल्हे-चौके में पारंपरिक व्यंजन जैसे गुलगुल भजिया, गुड़हा चीला, फरा और चटनी बनाकर देवी-देवताओं और कृषि उपकरणों को भोग अर्पित करती हैं।
🌿 बुरी शक्तियों को दूर करने की परंपरा
हरेली के दिन घरों के दरवाजों में नीम की टहनियाँ लगाई जाती हैं, जिससे यह विश्वास जुड़ा है कि इससे नकारात्मक शक्तियाँ और बीमारियाँ दूर रहती हैं।
उपसरपंच विष्णु साहू ने यह भी कहा कि —
> “हम सबका यह कर्तव्य है कि हम अपनी नई पीढ़ी को छत्तीसगढ़ की इन परंपराओं से जोड़ें। यही हमारी संस्कृति की पहचान और भविष्य की नींव है।”
ग्राम कौड़िया सहित पूरे क्षेत्र में हरेली पर्व के मौके पर उत्साह, आस्था और सांस्कृतिक समर्पण का माहौल देखने को मिला।



