*जंगल के बीच फंसा प्रशिक्षण: आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की पीड़ा और अधिकारियों का भ्रष्टाचार*
*सरकारी प्रशिक्षण या मजबूरी का शिविर? अव्यवस्था ने छीना मकसद*
सोनाखान। छत्तीसगढ़ परिदर्शन
बलौदाबाजार जिले के विकासखण्ड कसडोल के अंतर्गत एकीकृत बाल विकास परियोजना सोनाखान द्वारा ग्राम पंचायत राजादेवरी के सामाजिक भवन में 29,30,31 अगस्त तक आयोजित “पोषण भी पढ़ाई भी” कार्यक्रम अंतर्गत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का तीन दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण शिविर इन दिनों अव्यवस्थाओं और लापरवाही का पर्याय बन चुका है। जिस उद्देश्य के लिए यह शिविर आयोजित किया गया है, वह अव्यवस्थित माहौल, असुविधाओं और अधिकारियों की उदासीनता के कारण पूरी तरह हाशिए पर चला गया है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर ऐसे दुर्गम और बदहाल स्थान का चयन क्यों किया गया, जहाँ कार्यकर्ताओं को न तो मूलभूत सुविधाएँ मिल पा रही हैं और न ही सुरक्षित वातावरण।
*शहरी क्षेत्र की उपेक्षा कर दुर्गम गाँव में आयोजन*
इस शिविर को शहरी क्षेत्रों की उपेक्षा करते हुए जंगलों के बीच बसे राजादेवरी गाँव में आयोजित किया गया। दर्जनों महिला कार्यकर्ताओं को 80 से 90 किलोमीटर लंबा सफर तय कर यहाँ पहुँचना पड़ रहा है। लंबी दूरी तय करने के बाद भी उन्हें किसी भी तरह की परिवहन सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई। थकान और कष्टप्रद यात्रा के कारण प्रशिक्षण का असली मकसद कार्यकर्ताओं से छिनता जा रहा है। खासकर वे शिशुवत कार्यकर्ता, जो अपने छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लेकर यहाँ पहुँच रही हैं, उनके लिए यह प्रशिक्षण एक कष्टमय अनुभव बन गया है। उनके पास न बच्चों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था है और न ही आराम करने का कोई स्थान।
*आवासीय व्यवस्था केवल कागजों में*
सरकार द्वारा इस प्रशिक्षण शिविर के लिए लाखों की धनराशि जारी किए जाने की पुष्टि हो रही है, लेकिन वास्तविक स्थिति अत्यंत दयनीय है। आवासीय शिविर का दावा केवल कागजों पर है। मास्टर ट्रेनर और प्रशिक्षक खुद शिविर स्थल पर रुकना उचित नहीं समझते और प्रशिक्षण के बाद वापस लौट जाते हैं। मजबूरी में कई कार्यकर्ता रात्रि विश्राम करती हैं, लेकिन वहाँ उनके लिए ठहरने की कोई सुरक्षित व सुविधाजनक व्यवस्था नहीं है।
50 से 60 कार्यकर्ताओं को एक ही छोटे से कमरे में दरी बिछाकर जमीन पर सोना पड़ता है। स्वच्छ पानी की व्यवस्था नाम मात्र की है और एक मात्र शौचालय जर्जर हालत में है जहाँ दरवाजा के जगह प्लास्टिक बोरी से लगा हुआ होने के कारण उपयोग के योग्य नहीं है। महिला कार्यकर्ता तालाब में स्नान करने और लोटा यात्रा अर्थात खुले में शौच करने को विवश हैं, जो न केवल असुविधाजनक है बल्कि उनकी गरिमा और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा भी है।
*अंधेरे, मच्छर और जहरिले जीव-जंतु का खतरा*
प्रशिक्षण स्थल स्थित गाँव में बिजली की स्थिति बेहद खराब है। हर आधे घंटे में बिजली गुल हो जाने से रात्रि समय अंधकार छा जाता है। अंधेरे में साँप, बिच्छू और अन्य जहरीले जीव-जंतुओं के आ जाने की आशंका बनी रहती है। उमस भरी गर्मी और मच्छरों का आतंक कार्यकर्ताओं को चैन से सोने और प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करने से रोक रहा है। पंखों और स्वच्छ हवा की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। ऐसे माहौल में कार्यकर्ता स्वयं को असुरक्षित और बीमारियों की चपेट में आने के खतरे में महसूस कर रही हैं।
*खाना और प्रशिक्षण की दुर्दशा*जिस कक्ष में कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, उसी में उन्हें बैठना, खाना और सोना पड़ता है। कार्यकर्ताओं को फर्श पर दरी बिछाकर कचाकच भरे कमरे में प्रशिक्षण लेना पड़ रहा है, जहाँ न तो कुर्सियों-टेबल की व्यवस्था है और न ही उचित रोशनी-हवादार माहौल। भोजन जिस भवन में तैयार हो रहा है, वहाँ गंदगी का साम्राज्य है—मकड़ी के जाले, छिपकलियों की भरमार और साफ-सफाई का नामोनिशान नहीं है। ऐसी स्थिति में परोसा जाने वाला भोजन स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है।
सूत्रों की मानें तो रात्रि भोजन की राशि कार्यकर्ताओं के वेतन से काटे जाने की योजना भी अधिकारियों की ओर से बनाई गई है। यदि ऐसा हुआ तो यह सीधे-सीधे कार्यकर्ताओं के साथ आर्थिक शोषण और भ्रष्टाचार का उदाहरण होगा।
*लापरवाही या भ्रष्टाचार?*
प्रशिक्षण स्थल के चयन से लेकर व्यवस्थाओं की अनदेखी तक, हर कदम पर जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार की बू आ रही है। आरोप है कि इस शिविर को कम से कम खर्च में निपटाकर बाद में कागजों पर फर्जी बिलिंग दिखाकर सरकारी धन की बंदरबांट की जाएगी। यही वजह है कि कार्यकर्ताओं की कठिनाइयों के बावजूद उच्च अधिकारी पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं। कार्यकर्ताओं की समस्याएँ चाहे कितनी भी गंभीर क्यों न हों, उनका समाधान करने में किसी की रुचि नहीं है।
*प्रशिक्षण का असली उद्देश्य पीछे छूटा*
प्रदेशभर में नई शिक्षा नीति के तहत खेल और गतिविधि आधारित शिक्षा तथा सितम्बर माह में आयोजित होने वाले ‘पोषण माह’ की तैयारी को लेकर यह प्रशिक्षण आयोजित किया गया है। इस प्रशिक्षण में कार्यकर्ताओं को बच्चों को खेल-खेल में शिक्षा देने, अभिभावकों से संपर्क स्थापित करने, ई-केवाईसी और टीकाकरण की जानकारी देने तथा बच्चों के वजन मापन की सही विधियाँ सीखने का अवसर मिलना था।
लेकिन अव्यवस्था और अराजक माहौल ने प्रशिक्षण को खोखला बना दिया है। कार्यकर्ता थकान, असुविधा और असुरक्षा में घिरकर प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे हैं। परिणामस्वरूप जिस उद्देश्य से यह प्रशिक्षण आयोजित किया गया था, वह पूरी तरह से हाशिए पर चला गया है और केवल खानापूर्ति तक सीमित होकर रह गया है।
अब बड़ा सवाल यही है कि जब प्रदेशभर में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण और योजनाओं पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, तब भी ऐसी दुर्दशा और अव्यवस्था क्यों? क्या यह केवल लापरवाही है या फिर सुनियोजित भ्रष्टाचार? इसका जवाब देने से जिम्मेदार अधिकारी लगातार बच रहे हैं, जबकि कार्यकर्ताओं की पीड़ा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।



