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*किराये की टंकी से खेतों की प्यास बुझाते किसान: सूखा और कुदरत की नाराज़गी से बेहाल किसान*

*किराये की टंकी से खेतों की प्यास बुझाते किसान: सूखा और कुदरत की नाराज़गी से बेहाल किसान*

लवन।छत्तीसगढ़ परिदर्शन

क्षेत्र में महीनों से बारिश नहीं होने के कारण खेत सूखकर दरारों से भर गए हैं। आसमान से पानी न बरसने की मार अब सीधे किसानों की मेहनत और उम्मीदों पर पड़ रही है। किसान दिन-रात खेतों में मेहनत तो कर रहे हैं, लेकिन पानी की कमी ने उनकी सारी मेहनत पर पानी फेरने की नौबत ला दी है।

हालांकि नहर में अब पानी आया है, लेकिन उसे खेत तक पहुँचाने में भारी मारामारी मची हुई है। किसान अपने खेत बचाने की जद्दोजहद में नहर तोड़कर पानी मोड़ने जैसे कदम भी उठा रहे हैं, जो अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसे मामलों में कई ग्राम सरपंचों को कारण बताओ नोटिस भी जारी किए गए हैं। पर सवाल यही है—किसान करें तो आखिर करें क्या?

*कोरदा गाँव की तस्वीर: किराये की टंकी से सिंचाई*

लवन नगर से लगे ग्राम कोरदा में किसानों की पीड़ा और भी गहरी हो चली है। यहाँ के किसान खेतों की प्यास बुझाने के लिए किराये पर पानी की टंकी मंगाकर खेतों की सिंचाई करने को मजबूर हो गए हैं। यह दृश्य केवल खेतों की प्यास ही नहीं, बल्कि किसानों की बेबसी और लाचारगी को भी बयां करता है।

*आपासी विहीन क्षेत्रों की हालत और गंभीर*

जो क्षेत्र नहर सिंचित नहीं हैं, वहाँ की स्थिति भयावह है। इन इलाकों में फसल का विकास रुक गया है। किसान आंखों के सामने अपनी मेहनत, खून-पसीने की कमाई और उम्मीदों को बर्बाद होते देख रहे हैं। उनके लिए यह केवल आर्थिक संकट नहीं, बल्कि जीवन यापन का गंभीर प्रश्न बन गया है।

*प्राकृतिक रूठ और जलवायु परिवर्तन का असर*

किसान सवाल पूछ रहे हैं—आखिर कुदरत इतनी रूठ क्यों गई? लगातार हो रही वृक्षों की कटाई, प्रकृति का दोहन और पर्यावरण से खिलवाड़ का दुष्परिणाम अब साफ दिखाई देने लगा है। जलवायु परिवर्तन का असर केवल मौसम पर नहीं, बल्कि सीधे किसानों के भविष्य पर पड़ रहा है।

किसानों की यह पीड़ा केवल उनकी व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि आने वाले कल का गंभीर संकेत है। यदि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और जलवायु परिवर्तन को नजरअंदाज किया गया, तो आने वाले समय में खेती और खाद्यान्न संकट की स्थिति और गहरी हो सकती है।

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