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*अवारा मवेशियों कों लेकर उपजा खूनी संघर्ष*



*अवारा मवेशियों कों लेकर उपजा खूनी संघर्ष*

 *किसानों की लाचारी, प्रशासन की चुप्पी और मूक प्राणियों की बलि*

बलौदाबाजार। छत्तीसगढ़ परिदर्शन

किसानों के लिए समय पर अपने फसलों के लिए आवश्यक खाद डीऐपी, यूरिया इत्यादि न मिलना, साथ ही मौसम का मार, फसलों के लिए पर्याप्त पानी न मिलना इत्यादि—ये सब किसानों की दूसरी समस्या है।वर्तमान में सबसे पहली और बड़ी समस्या अवारा मवेशियों से अपने फसल को बचाना है। किसान अपनी रोज़ी-रोटी खेत से कमाता है। उसकी पूरी मेहनत, दिन-रात की लगन फसल में दिखाई देती है। परंतु जब महीनों की मेहनत को एक झुंड अवारा मवेशी चंद घंटों में चौपट कर देता है, तो वह किसान हताश, लाचार और क्रोधित हो उठता है। यह समस्या अब इतनी भयावह हो चुकी है कि गाँव-गाँव में रातभर किसान खेतों में डटे रहते हैं, कभी डंडा तो कभी टॉर्च लेकर। फसल से अधिक उनकी नींद और चैन इन मवेशियों ने निगल लिया है।सरकार की मवेशियों को लेकर कोई स्पष्ट नीति न होने के कारण अवारा मवेशी किसानों के लिए इतनी बड़ी समस्या बन गई है कि इस कारण दो अलग-अलग गाँवों के लोगों के बीच इस बात को लेकर खूनी संघर्ष तक देखने को मिल रहा है।

ताज़ा मामला बलौदाबाजार जिले के पलारी जनपद अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत सोनारदेवरी में देखने को मिल रहा है। अवारा मवेशियों से अपनी फसल को बचाने के जद्दोजहद ने ग्राम सोनारदेवरी और उसी पंचायत के आश्रित ग्राम धौराभाठा के बीच तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी है।

आश्रित गाँव धौराभाटा के ग्रामीण आरोप लगाते हुए बताया कि 5 सितम्बर शुक्रवार की रात्रि लगभग 10 बजे सोनारदेवरी के 50–60 लोग लाठी-डंडे के साथ दर्जनों अवारा मवेशियों को खदेड़ते हुए धौराभाठा की ओर पहुँचे। इसी दौरान सुरक्षा व्यवस्था के घेरा तोड़े जाने को लेकर धौराभाठा के युवक मोहन खुटे से उनकी कहा-सुनी हुई। विवाद इतना बढ़ा कि भीड़ ने अकेले युवक पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया। परिजन उसे तत्काल लवन अस्पताल ले गए और पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई। दूसरी ओर सोनारदेवरी के लोग भी अपराध दर्ज कराने पहुँचे।

यह घटना सिर्फ झगड़ा नहीं, बल्कि उस गुस्से और बेबसी का प्रतीक है जो अवारा मवेशियों के कारण किसानों के भीतर पल रहा है। दोनों ओर से अपराध पंजीबद्ध हुआ है और विवेचना जारी है।

*प्रशासनिक कोशिशें: शांति की अपील या औपचारिकता?*

घटना के बाद दोनों गाँवों में तनाव बढ़ गया। स्थिति को देखते हुए पुलिस बल मौके पर पहुँचा। साथ ही लवन तहसीलदार पेखन टोंन्ड्रे,लीलाधर कवर, लवन थाना प्रभारी अमित पाटले, जनपद सीईओ पन्नालाल धुर्वे,  और ग्राम सचिव भी गाँव पहुँचे।

धौराभाठा के घासीदास चौक में दोनों गाँवों के लोगों को बुलाकर रात्रि 8 बजे तक बैठक चली। अधिकारियों ने लगातार लोगों को समझाने की कोशिश की और शांति बनाए रखने की अपील की। अंततः प्रशासन के सामने सभी ने आपसी समझौते की सहमति दे दी। लेकिन असली सच यह है कि—कागज़ पर समझौता हो गया, पर ग्रामीणों के दिलों में आक्रोश और अविश्वास अब भी गहराई तक जड़ें जमाए हुए है।


*ग्रामीणों के आरोप: मवेशियों पर अमानवीय अत्याचार*

इसी बीच प्रशासन के सामने धौराभाठा के ग्रामीणों ने गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि सोनारदेवरी के लोग जानवरों के साथ मारपीट और अमानवीय व्यवहार करते हैं, जिससे मवेशियों की मौत तक हो जाती है। ग्रामीणों का दावा है कि एक ही दिन डेढ़ दर्जन से अधिक मवेशी अमानवीय कृत्य का शिकार हुए है जिन्हे रोड किनारे पानी टंकी के पास बने खाली ज़मीन पर गड्ढा खोदकर दबा दिया गया। ग्रामीणों ने उस जगह को खोदकर सच सामने लाने की मांग भी की। लेकिन प्रशासन इस मुद्दे पर मौन साधे बैठा है।

यह आरोप महज़ दो गाँवों के बीच का विवाद नहीं, बल्कि एक बड़ी संवेदनहीनता का सबूत है—जहाँ इंसानी लड़ाई का खामियाज़ा निर्दोष मूक पशुओं को अपनी जान देकर चुकाना पड़ रहा है।

*प्रशासन की चुप्पी पर सवाल*

यहाँ सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है कि जब ग्रामीण इतने गंभीर आरोप लगा रहे हैं, तो प्रशासन उस जगह की खुदाई कर जांच क्यों नहीं कर रहा है?

क्या सच सामने आने से किसी की लापरवाही उजागर हो जाएगी?

या प्रशासन सिर्फ औपचारिकता निभाकर मामले को दबाना चाहता है?

 क्या दर्जनों संख्या में मवेशी मरे है मरे है तो हत्यारा कौन है?

*मूक प्राणियों की त्रासदी*

इस पूरे घटनाक्रम का सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि इंसानों के झगड़े का शिकार वे निर्दोष मवेशी बन रहे है, जिनकी कोई गलती ही नहीं। कभी किसानों के खेत में घुसकर फसल खाते हैं तो उन पर लाठियाँ बरसती हैं।कभी विवाद की आड़ में उन्हें पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया जाता है। और फिर गड्ढों में दबाकर उनकी मौत को छिपाने की कोशिश होती है। आखिर इन मूक प्राणियों की गलती क्या है? क्या सिर्फ इसलिए कि सरकार ने उनके लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं की?

*सरकार की नीतिगत विफलता*

गाँव-गाँव में अवारा मवेशियों की समस्या हर दिन विकराल होती जा रही है। परंतु राज्य और केंद्र सरकार दोनों की नीतियाँ अब तक सिर्फ कागज़ों तक सीमित हैं।न गौशालाओं की संख्या पर्याप्त है,न मवेशियों के लिए भोजन-पानी का स्थायी प्रबंध,न किसानों को कोई मुआवज़ा या सुरक्षा का भरोसा। किसानों और मवेशियों दोनों की दुर्दशा के लिए सीधे तौर पर यही नीतिगत विफलता जिम्मेदार है।

सोनारदेवरी - धौराभाठा की यह घटना केवल एक गाँव का विवाद नहीं, बल्कि उस पूरे तंत्र पर सवाल है जो किसानों को राहत देने और मूक प्राणियों की रक्षा करने में पूरी तरह असफल रहा है।

सवाल यह है कि कब तक किसानों को अपनी फसल बचाने के लिए लाठी-डंडा उठाना पड़ेगा? कब तक निर्दोष मवेशियों को इंसानी लालच और झगड़ों की कीमत जान देकर चुकानी पड़ेगी? और आखिर कब तक सरकार और प्रशासन इस गम्भीर समस्या पर आँख मूँदकर बैठे रहेंगे?

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